10th Hindi

BSEB 10th Exam Hindi Ka VVI Question

BSEB 10th Exam Hindi Ka VVI Question


(1) ‘प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है ? 

उत्तर- ‘प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि ने पत्थर का चित्रण एक सजीव मानव के रूप में किया है। युगों-युगों से यह पत्थर हमारी सभ्यता और संस्कृति की कहानी अपने मूक भाषा में व्यक्त कर रहा है। पत्थर किसी काल या देवता की अगवानी नहीं कर रहा है बल्कि वह तो मानव को देवता से भी बढ़कर तरजीह देते हुए उसके साथ अपने पुरातन आत्मीय संबंध को प्रकट कर रहा है। ये पत्थर-मूक भाषा में कविता का सृजन करते हैं, प्रार्थना करते हैं, बिना. शब्द के काव्य-सृजन में निमग्न हैं, पता नहीं ये किसकी बाट जोह रहे हैं। प्रतीक्षा करते पत्थर पाषाण के रूप में नहीं बल्कि एक इतिहास पुरुष के रूप में मानव के विकास की कहानी के विविध रूपों का सम्यक् चित्रण प्रस्तुत कर हमसे गुरु सदृश व्यवहार कर रहे हैं। अत: ये पत्थर नहीं हैं, इंसान हैं। इनके भी दर्द है, पीड़ा है और है-संवेदनशीलता । 

(2) कवि ने डफाली किसे कहा है और क्यों ? 

उत्तर- कवि ने डफाली दासवृत्ति की चाह रखने वाले को कहा है। सभी धर्म के लोगों ने नौकरी की खोज में अपना मान-सम्मान समर्पित कर दिया है। नौकर बनकर स्वामी की ठकुरसुहाती करना ही उनके लिए उत्तम धन है। झूठी प्रशंसा उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। 

(3) कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ? 

उत्तर- प्रथम अनुच्छेद में कवि ने भारतमाता के रूपों का सजीवात्मक रूप प्रदर्शित किया है। गाँवों में बसनेवाली भारतमाता आज धूल-धूसरित शस्य-श्यामला रहकर उदासीन बन गई है। उसका आँचल मैला हो गया है । गंगा-यमुना के निर्मल जल प्रदूषित हो गये हैं। इसकी मिट्टी में पहले जैसी प्रतिभा और यश नहीं है। आज यह उदास हो गई है। 

(4) ‘मन लेह पै देहु छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है ? 

उत्तर- वस्तुतः यहाँ कवि प्रेम के भावों को एक नया रूप देना चाहता है । प्रेमी और प्रेमिका प्रेम के भावों में ऐसे बँध जाते हैं जिनसे वे मुक्त नहीं हो सकते हैं। दोनों एक-दूसरे का प्रेम अन्तर्मन में धारण कर लेते हैं । यहाँ कवि मन के बराबर लेकर छटाँक न देने की स्थिति के माध्यम से नायिका के प्रति अपने मनोभावों को उजागर करता है।

(5) भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध के प्राचीन प्रमाण लेखक ने क्या दिखाए हैं ? . 

उत्तर- हाथी दाँत, बंदर, मोर और चंदन आदि जिन वस्तुओं के विषय में निर्यात की बात बाइबल में कही गई है, वे वस्तुएँ भारत के सिवा किसी अन्य देश से नहीं लायी जा सकतीं। यहाँ तक कि ‘शाहनामा’ के रचनाकाल (10वीं, 11वीं-सदी) में भी भारत के साथ यूरोप के ये व्यापारिक संबंध बंद नहीं हुए थे।

(6) लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है ? 

उत्तर- जब मनुष्य जंगली था तब उसे नाखून की आवश्यकता थी। उसकी जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ना पड़ता था, नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था।

(7) देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ? 

उत्तर- करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं, इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है। 

(8) मंगम्मा का अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था?

उत्तर- संसार का सत्य है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी ही रहती है । माँ बेटे पर से अपना हक नहीं छोड़ना चाहती और बह पति पर अधिकार जमाना चाहती है । बहू ने किसी बात को लेकर अपने बेटे को खूब पीटा । मंगम्मा ने अपने पोते की पिटाई से क्षुब्ध होकर बहू को भला-बुरा कह दिया । बेटे पर अधिकार को लेकर मंगम्मा और उसकी बहू में विवाद था।

(9) मंगु को पागलों के अस्पताल में भर्ती कराने की लोगों की सलाह पर उसकी माँ क्या कहती थी? 

उत्तर – जब लोग मंगु की माँ से मंगु को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहते तो वह यह कहकर लोगों को जवाब देती कि यदि मैं माँ होकर उसकी सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वाले भला क्या करेंगे। यह तो अपंग जानवरों को गौशालाओं में भर्ती कराने जैसा ही होगा। 

(10) ‘इंकार करना न भूलनेवाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- इठीला जीवन जीने वाले वैसे लोग जो त्रस्त होने पर भी अपने आत्मबल को कमजोर नहीं कर पाये हैं। अभावों के बीच भी अपने तेज को संजोये रखते हैं। हठयोगी एवं कर्मयोगी रहनेवाले वे विषम परिस्थितियों में भी अपनी जिज्ञासा और आत्मबल को मजबूत किये रहते हैं। 

(11) राजनैतिक मूल्यों से साहित्य का मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं।

उत्तर- साहित्य के मूल्य राजनैतिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक स्थायी हैं। अंग्रेज कवि टेनीसन ने लैटिन कवि वर्जिल पर एक बड़ी अच्छी कविता लिखी थी। इसमें उन्होंने कहा है कि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया पर वर्जिल के काव्य-सागर की ध्वनि-तरंगें हमें आज भी सुनाई देती हैं और हृदय को आनन्द-विह्वल कर देती हैं।


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