तुमुल कोलाहल कलह में चैप्टर का सारांश
तुमुल कोलाहल कलह में-
जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं। प्रसाद मुख्यतः गहन अनुभूति के रचनाकार हैं। उनके अनुभव की सीमाएँ हैं और इसी कारण यथार्थवादी लेखकों जैसी व्यापकता उनमें प्राप्त नहीं होती, पर अध्ययन–मनन द्वारा उन्होंने इतिहास की दृष्टि प्राप्त की थी और कामायनी में उनको युगबोध सहज ही देखा जा सकता है। प्रसाद का समस्त साहित्य मानवीय और सांस्कृतिक भूमिका पर प्रतिष्ठित है। प्रेम–सौंदर्य आदि की अनुभूतियाँ उनकी मानवीयता से संबंध रखती हैं। प्रस्तुत कविता प्रसाद की दुनिया के बारे में समझ का प्रतिफलन है।
‘तुमुल कोलाहल कलह में‘ कविता महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से उद्धृत है। इड़ा के प्रजा और मनु के मध्य युद्ध की समाप्ति के बाद सर्वत्र शोक का वातावरण छाया हुआ था। तभी दूसरी ओर से श्रद्धा आ जाती है। इड़ा ने विराहिणी श्रद्धा को आश्रय दिया, किन्तु जब श्रम ने मूर्च्छित अवस्था में पड़े हुए मनु को देखा तो उसकी वेदना अत्यधिक मुखर हो उठी। दीर्घकाल के पश्चात् श्रद्धा और मनु का. मिलन होता है। श्रद्धा मनु को बताती है कि वह भावनाओं के कोलाहल में शान्ति की दुतिनी है। छायावादी कवियों की यह विशेषता है कि उनके वाक्यों में लाक्षणिक और प्रतीकार्थ का ज्यादा प्रयोग है। श्रद्धा हृदय का प्रतीक, इड़ा बुद्धि का और मनु मन का। मन इन दोनों से संचालित होता है। व्यक्ति जब विचारों के उथल–पुथल में हो तब उसे हृदय की बात माननी चाहिए।
अथवा, प्रस्तुत वाक्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर‘ द्वारा रचित – ‘अर्द्धनारीश्वर‘ निबंध से उद्धृत है। लेखक के अनुसार आज पुरुष और स्त्री में अर्द्धनारीश्वर का यह रूप कहीं भी देखने में नहीं आता। संसार में स्त्री एवं पुरुष में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। संसार में सर्वत्र पुरुष–पुरुष है और स्त्री–स्त्री। नारी समझती है कि पुरुष भी स्त्रियोचित्त गुणों को अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराता है। स्त्री और पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है और विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है।
लेकिन, आज नर एवं नारी में सामंजस्य की आवश्यकता कहीं अधिक बढ़ गई है। आज के युग में दोनों की समान अनिवार्यता है। नर–नारी एक–दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का कार्य अधूरा है। नर काया है तो नारी उसकी छाया। आज नर–नारी समान रूप से मिलजुलकर परिवार, समाज एवं देश को आगे बढ़ा सकते हैं। अतः, अर्द्धनारीश्वर की कल्पना आज कहीं ज्यादा सार्थक है।
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