12TH HINDI CHAPTER WISE QUESTION

भूकंप – Bhukamp

भूकंप – Bhukamp


भूकंप में प्रकृति कुपित होती है, तो उसके दुष्परिणाम भूकंप जैसी प्राकृतिक-आपदाओं के रूप में सामने आते हैं। जब भूकंप आता है, तो धरती कांप उठती है और चारों तरफ तबाही के मंजर देखने को मिलते हैं। कुपित प्रकृति विनाश का तांडव करती है, जिसके सामने भानव असहाय नजर आता है। भूकंपों की वजह से जान-माल का भारी नुकसान होता है तथा इतनी अधिक क्षति होती है कि उससे उबरने में वर्ष लग जाते हैं। वर्ष 1905 से अब तक लगभग 20 बड़े भूकंप ने भारत में भारी तबाही मचाई। इन भूकंपों ने विनाश की जो लीला की, उसे विस्मृत कर पाना संभव नहीं है। – मैसलेवल ने भूकंप को वैज्ञानिक ढंग से कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है- “भूकंप धरातल के ऊपरी भाग की वह कंपन विधि है, जो कि धरातल के ऊपरी अथवा निचली चट्टानों के लचीलेपन व गुरुत्वाकर्षण की समस्थिति में न्यून अवस्था से प्रारंभ होती है। ” भूकंप के कारण धरातल में होने वाला कम्पन प्रघात कहलाता है तथा भूकंपों का अध्ययन करने वाले विज्ञान को “सिस्मोलॉजी’ कहते हैं। . 

भूकंप कई कारणों से आते हैं। अक्सर ज्वालामुखी का विस्फोट भूकंप का कारण बनता है। जब ज्वालामुखी फटते हैं, तो उनके आस-पास के क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली हलचल भूकंप कहलाती हैं। जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी ज्यादा होते हैं, वहाँ भूकंप की संभावनाएँ अधिक रहती हैं। कभी-कभी तो ये बिना फटे ही धरातलीय कंपन पैदा कर देते हैं। होता यह है कि इनके अंदर का लावा बाहर आना चाहता है, किन्तु कड़े शैलों के अवरोध के कारण बाहर आ नहीं ‘पाता। फलतः चट्टानों में पैदा होने वाला कंपन भूकंप लाता है। पृथ्वी का सिकुड़ना भी भूकंप का एक कारण है। 

भूकंप कितना भयावह और तीव्र है, इसका आकलन इस बात से किया जाता है कि उसने मानव पर कितना प्रभाव डाला तथा भूमि में उसकी गति कितनी रही। भूकंप की विनाशलीला ही इसके आकलन का मुख्य आधार होता है। भूकंप के परिणाम को रिक्टर पैमाने पर मापा जाता है। इस पर अभी तक अधिकतम 8.9 गहनता तक के भूकंप मापे जा चुके हैं। 8.1 से अधिक गहनता के भूकंप जहाँ प्रलयकारी होते हैं, वहीं 7.4 से 8.1 गहनता के भूकंप अति विनाशी होते हैं। 4.9 से 5.4 गहनता के भूकंप जहाँ प्रबल माने जाते हैं, वहीं 4.2 गहनता वाले अल्प होते हैं। 2.0 गहनता का भूकंप मानव द्वारा महसूस किया जा सकने वाला सबसे कमजोर भूकंप होता है। 4.3 गहनता वाले भूकंप साध गरण श्रेणी के होते हैं। . 

 वैसे तो भूकंप विनाश और बर्बादी का पर्याय माने जाते हैं, किन्तु ये कुछ मायनों में लाभकारी भी साबित होते हैं। यहाँ हम इसके लाभ-हानियों पर सम्यक् विचार करते हैं। भूकंपीय दंश कभी-कभी जल स्रोतों का निर्माण करते हैं, जो मानव समाज के लिए लाभकारी होते हैं। अक्सर भू-भागों के धंस जाने से झीलों का निर्माण होता है, जो जल के स्रोत के रूप में उपयोगी सिद्ध होती है। भूकंप के कारण धरती फटती है, धरातल पर दरारें पड़ती हैं, इससे हमें खनिज पदार्थों की प्राप्ति होती है। भूकंप का एक फायदा यह भी है कि कई बार समुद्र तटीय भागों में भूकंप आने से तटीय भाग नीचे धंस जाते हैं, जिससे गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है। इससे अच्छे समुद्र पत्तन बनने का मार्ग प्रशस्त होता है, जिनसे व्यापार में सहायता मिलती है। ऐसा भी होता है कि भूकंप की वजह से एक बड़ा जलाच्छादित भाग समुद्र से बाहर आ जाता है, जिससे नये स्थलीय भाग का निर्माण होता है। भूकंपों से वलन भ्रंश पैदा होता है, इससे जहाँ स्थलाकृतियों का जन्म होता है, वहीं भूस्खलन से होने वाला अपक्षय मिट्टी के निर्माण में सहायक होता है। भूकंप भू-गर्भीय ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते 

वैसे भूकंप के फायदे कम, नुकसान ज्यादा हैं। इससे जान-माल को व्यापक क्षति होती है। वर्ष 2001 में भारत के भुज (गुजरात) में आए भूकंप में जहाँ लगभग एक लाख लोग मारे गए थे, वहीं सम्पत्ति की व्यापक क्षति हुई थी। भूकंप आने से रेल व सड़क मार्ग भी ध्वस्त हो जाते हैं, जिससे यातायात व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है। जीवन ठहर सा जाता है। भूकंपों के कारण कभी-कभी आग लगने की घटनाएँ भी होती हैं, जो तबाही मचाती हैं। जहाँ बिजली के तारों का टकराव आग का कारण बनता है, वहीं पेट्रोलियम व गैस . भंडारों में भीषण आग लग जाती है। भूकम्प की चपेट में आने से बड़े-बड़े पल आदि ध्वस्त हो जाते हैं, जिनके पुननिर्माण में बहुत समय लग जाता है। भूकंप के कारण चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं, जिनसे बाद में भू-स्खलन की स्थिति पैदा होती है। 

भूकंप पर मानव का कोई जोर नहीं। इन्हें रोक पाने की भी कोई प्रणाली हमारे पास नहीं है। इतना जरूर है कि हम कुछ सावधानियाँ बरत कर व कुछ उपाय कर इसके प्रभाव को थोड़ा न्यून कर सकते हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में भूकंप नियंत्रण केन्द्रों की स्थापना की जाए, ताकि इसकी पूर्व सूचना वहाँ के निवासियों को दी जा सके। ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम के द्वारा भी विवर्तनी प्लेटों की गति का पता लगाकर लोगों को सावध न किया जा सकता है। यह भी जरूरी है कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में क्षमता के अनुरूप ही निर्माण कार्य हो तथा यहाँ ऊँची इमारतें न बनाई जाएँ। भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से ऐसी इमारतें बनाई जाएँ जो भूकंप प्रतिरोधी हो तथा इनमें हल्की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाए। भूकंप से बचाव एवं राहत कार्यों के लिए भी हम ठोस रणनीति बनानी होगी और एक ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी, जिससे भूकम्प से निजात मिल सके। 

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