12TH HINDI CHAPTER WISE QUESTION

तुमुल कोलाहल कलह में चैप्टर का सारांश

तुमुल कोलाहल कलह में चैप्टर का सारांश


तुमुल कोलाहल कलह में-

जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैंप्रसाद मुख्यतः गहन अनुभूति के रचनाकार हैंउनके अनुभव की सीमाएँ हैं और इसी कारण यथार्थवादी लेखकों जैसी व्यापकता उनमें प्राप्त नहीं होती, पर अध्ययनमनन द्वारा उन्होंने इतिहास की दृष्टि प्राप्त की थी और कामायनी में उनको युगबोध सहज ही देखा जा सकता हैप्रसाद का समस्त साहित्य मानवीय और सांस्कृतिक भूमिका पर प्रतिष्ठित हैप्रेमसौंदर्य आदि की अनुभूतियाँ उनकी मानवीयता से संबंध खती हैं। प्रस्तुत कविता प्रसाद की दुनिया के बारे में समझ का प्रतिफलन है। 

तुमुल कोलाहल कलह मेंकविता महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से उद्धृत हैइड़ा के प्रजा और मनु के मध्य युद्ध की समाप्ति के बाद सर्वत्र शोक का वातावरण छाया हुआ था। तभी दूसरी ओर से श्रद्धा जाती हैइड़ा ने विराहिणी श्रद्धा को आश्रय दिया, किन्तु जब श्रम ने मूर्च्छित अवस्था में पड़े हुए मनु को देखा तो उसकी वेदना अत्यधिक मुखर हो उठीदीर्घकाल के पश्चात् श्रद्धा और मनु का. मिलन होता हैश्रद्धा मनु को बताती है कि वह भावनाओं के कोलाहल में शान्ति की दुतिनी हैछायावादी कवियों की यह विशेषता है कि उनके वाक्यों में लाक्षणिक और प्रतीकार्थ का ज्यादा प्रयोग हैश्रद्धा हृदय का प्रतीक, इड़ा बुद्धि का और मनु मन कामन इन दोनों से संचालित होता हैव्यक्ति जब विचारों के उथलपुथल में हो तब उसे हृदय की बात माननी चाहि। 

अथवा, प्रस्तुत वाक्य राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकरद्वारा रचित अर्द्धनारीश्वर‘ निबंध से उद्धृत हैलेखक के अनुसार आज पुरुष और स्त्री में अर्द्धनारीश्वर का यह रूप कहीं भी देखने में नहीं आतासंसार में स्त्री एवं पुरुष में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैंसंसार में सर्वत्र पुरुषपुरुष है और स्त्रीस्त्री। नारी समझती है कि पुरुष भी स्त्रियोचित्त गुणों को अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराता हैस्त्री और पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है और विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है। 

लेकिन, आज नर एवं नारी में सामंजस्य की आवश्यकता कहीं अधिक बढ़ गई हैआज के युग में दोनों की समान अनिवार्यता है। नरनारी एकदूसरे के पूरक हैंएक के बिना दूसरे का कार्य अधूरा हैनर काया है तो नारी उसकी छायाआज नरनारी समान रूप से मिलजुलकर परिवार, समाज एवं देश को आगे बढ़ा सकते हैं। अतः, अर्द्धनारीश्वर की कल्पना आज कहीं ज्यादा सार्थक है।

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